ख्वाबों के घरोंदों में,
एक झलक सी देखी है,
कहीं ज़िन्दगी, वो तुम तो नहीं?
आसमान में उड़ते परिंदों में,
एक जीवन की आशा की है,
कहीं आकाश की सीमा कम तो नहीं?
एक टूटे हुए सपने के टुकड़ों से,
एक नया सपना संजोया है,
कही वो जुर्म तो नहीं?
एक संकुचित तन ने,
कुछ पैर पसारने की तम्मना की है,
कहीं ये सितम तो नहीं?
एक बुझे हुए मन ने,
फिर जलने की हिम्मत की है,
कहीं इसी का नाम जीवन तो नहीं?
This is beautiful. I doubt if you Actually wrote it. :P
ReplyDeleteOf course I know you did. Good work girl!
Of course I did. Thanks a lot. :)
ReplyDeletebeautiful poem. The apprehensions and fear of humans towards expressing themselves in this world!!
ReplyDeleteKahin tum woh to nahin...jo nahi tha ek khwab mein..jo nahi tha ek dhool mein...jo tha to fir ek sach hee tha...jara sa dara sa ek sach..kahin tum woh to nahin?
ReplyDeleteJust taking over your llines...keep up the good work..they are musical!!