ज़िन्दगी की पटरियों पर,
दौड़ रहे हैं हम रेल ही तरह,
अपनी अपनी मंजिलों को,
पाने की तलाश में..
कभी ख़ुशी, कभी गम,
ये हैं वो पड़ाव,
जहाँ जहाँ रुकते हैं,
हम इस जीवन की राह में..
मिल जाते है लोग अनेक,
कुछ आम, कुछ ख़ास,
कुछ छोड़ जाते हैं,
कुछ साथ निभाते धूप-छाओं में..
जब रूकती है ये रेल गाड़ी,
अपनी मंजिल पर,
और मुड़कर पीछे देखते हैं हम,
कि क्या खोया, क्या पाया इस राह में..
रह जाती हैं सिर्फ यादें,
उन हसीं पलों की,
जिन्हें जी न पाए हम पूरी तरह,
उस मंजिल को पाने कि दौड़ में..